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टूटे दिल की टूटी आस...
किस्मत की बदनसीबी कहे या कर्मो की नाकामी,
किसे दे इल्जाम इस तकलीफ का है कैसी बेरुखी।
शिकायत करें भी तो किससे करें अब हमें कुछ नहीं कहना,
सब जानते है हम बुरे वक़्त में क्यों किसी से गिला करना।
हालात तो इतने बुरे है की रोना भी अब आसान नहीं,
दिल रो रहा है ख़ुशी की चाहत में वो भी मुनासिब नहीं।
टूट गये अंदर से मुस्कान चेहरे पर सुकून भरी आती नहीं,
लोग हँसने को कहते है उन्हें समझाना अब इच्छा ही नहीं।
© Niharik@ ki kalam se✍️
किसे दे इल्जाम इस तकलीफ का है कैसी बेरुखी।
शिकायत करें भी तो किससे करें अब हमें कुछ नहीं कहना,
सब जानते है हम बुरे वक़्त में क्यों किसी से गिला करना।
हालात तो इतने बुरे है की रोना भी अब आसान नहीं,
दिल रो रहा है ख़ुशी की चाहत में वो भी मुनासिब नहीं।
टूट गये अंदर से मुस्कान चेहरे पर सुकून भरी आती नहीं,
लोग हँसने को कहते है उन्हें समझाना अब इच्छा ही नहीं।
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