...

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शिशु
पुरुष ढूंढते है
अपनी प्रेमिका में
मां की छवि
और स्त्रियां
पिता को ढूंढती है
प्रेमी में
हां प्रेम में हम फिर से
शिशु हो जाते हैं
अक्सर हम ही बन जाते हैं
एक दूसरे के माता–पिता
और सहलाते है एक– दूसरे की
सिलवटें पड़ी पेशानी
जिन पर उम्र की धुंध में
धुंधला गई है
मां के नर्म होठों की निशानी
और बरगद से पिता की कहानी
हां प्रेम में हम
फिर से शिशु हो जाते हैं

© Ranjana Shrivastava