...

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हर शाम मर जाते है....
एक खुशनुमा सुबह की शुरुआत करने वाले,
शाम ढलते ढलते खुद की ही नजरों से गिर जाते हैं,
बिताते है दिन अपना हम इतने समझौतों मे की,
शाम ढलते ढलते हम उसके बोझ तले मर जाते है,
मुक्कदर् मेरी अभी ठहरी वहीं है हालात भी नासाज है,
शराब कैसी भी हो उसके नशे एक पल मे उतर जाते है,
लोग कहते है की गुजर जाता है वक़्त, ठहरता नही है,
इस इंतजार में हम हर रोज थोड़ा सा बिखर जाते है,
दिखा घर जो हो चुका खंडहर
लगा की बेहतर है ये मुझसे,
हम तो खत है बे नाम पते के,
कभी इधर तो कभी उधर जाते है_!!!
© दीपक