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म्हारो राजस्थान | दार्शनिक कविता | लेखक : शिव योगी
म्हारो राजस्थान, रेताळ धरती को यो अद्भुत थां,
सुंदर मरुधरा, जां वीरां रो गाण,
रेत-रेत में बस्सी है जो संस्कृति पुराणी,
हर दिल में बस्सो है, म्हारी माटी रो मान।

आंचळ में बंधी है, शौर्य री कहाणीयां,
महाराणा प्रताप री, वीरता री बाणीयां,
मेवाड़ री धरती, जो गौरव सै भरी,
पन्नाधाय री ममता, जो त्याग में बसी।

जयपुर री हवेलीयां, जां हवावां रो खेल,
अंबर रो किला, जो इतिहस में बेमिसाल,
उदयपुर री झीलां, जां सौंदर्य रो आलम,
चित्तौड़ री विजयगाथा, जो सुनावै है स्वर्णिम काल।

थार रो रेगिस्तान, जां मृग मरीचिका रो मान,
जैसलमेर रो सोनार किला, जो स्वर्णिम सुनहरी शाम,
बीकानेर री भुजिया, जो मिठास में लिपटी,
अणे जोधपुर री नीळी गलियां, जो सवपनां में सजी।

मरुधरा री रंगत, जां हर त्योहार खास,
तिलक अणे पगड़ी, जो बढ़ावै है मान-शान,
गरबा अणे घूमर, जां रौनक बढ़ावै,
अणे मांड गायन, जो मन ने लुभावै।

उगते सूरज री रौशनी में, रेगिस्तान री चमक,
सांस्कृतिक धरोहर में बसी, वह अद्भुत झलक,
माटी री खुशबू में, बस्सो जो अपनापन,
वह म्हारो राजस्थान, म्हारो प्यारा राजस्थान।

कृष्ण री बंसी अणे मीरां री तान,
कदी गोपियां रो रास, कदी संतां रो गाण,
पीळी माटी री कण, जां है रत्नां रे समान,
म्हारो राजस्थान, म्हारो गौरव, म्हारी जान।

सरोवरां री भूमि, जां पुष्कर रो मेला,
अजमेर री दरगाह, जो सवन्ने नै है भा,
बीकानेर रो रत्न, जां मंदिर है करणी माता रो,
अणे बूंदी रे किले, जो सजावै है तस्वीर अद्भुतता रो।

सात रंगां री चुनरी, जो बंधे है इस धरा पर,
हर एक कोने में बसी, वह प्यार री धारा,
हर एक कण में छिपो, वह त्याग अणे समर्पण,
वह है म्हारो राजस्थान, म्हारो अभिमान, म्हारो धन।

म्हारो राजस्थान, जां है संस्कृति री पहचान,
जां हर दिल में बस्सो है, अद्वितीय अभिमान,
वह रंगीळी धरा, वह प्यारी माटी,
म्हारो राजस्थान, म्हारो स्वाभिमान, म्हारी माटी।

चूंदड़ी री लालिमा में, गूंजती है लोकगीतां री तान,
कदी कालबेलिया रो रास, कदी घूमर रो नृत्य विहान,
लोहारां री कला,...