कविता हो तुम
चुप्पी साधे अधर की
जो ना कहीं वो बात हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.
मेरे हृदय के मरुस्थल में
बह रही सरिता हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.
एक बियाबान जंगल जिसमें बहती पुरवाई हो तुम
मेरी...
जो ना कहीं वो बात हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.
मेरे हृदय के मरुस्थल में
बह रही सरिता हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.
एक बियाबान जंगल जिसमें बहती पुरवाई हो तुम
मेरी...