...

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कविता हो तुम
चुप्पी साधे अधर की
जो ना कहीं वो बात हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.

मेरे हृदय के मरुस्थल में
बह रही सरिता हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.

एक बियाबान जंगल जिसमें बहती पुरवाई हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.

निर्मोही जग सारा,
इसमे धूनी रमाई हुए हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम.

मिल ना सका जलधि का
वह अंतिम छोर हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम

शब्दों में समाहित जो ना हो
वो मेरी रचना हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम

सोज उम्र भर का उसमें
सुख अनुभूति हो तुम
मेरी अनकही कविता हो तुम...
© jitensoz