...

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तब मिल जाऊंगा मैं
तब मिल जाऊंगा मैं...
जब तुम मुरझाओगे,उस मुरझाए हुए तुम में तुम्हारे साथ खिल जाऊंगा मैं.....
जब सफ़र तुम्हारा लंबा होगा और कोई हम सफ़र ना रहेगा, तब तुम्हारे साथ मंज़िल तलक चला जाऊंगा मैं...
जब तन्हाई के मझधार में तुम ख़ुद को पाओगे, तब किनारों कि महफ़िल सजाने आ जाऊंगा मैं...
जब उदासी के बादल घुमड़- घुमड़ कर आएंगे, तब खुशियां बनकर बरश जाऊंगा मैं..
जब कहानियां अधूरी सी रह जाएगी...तब पूरे अल्फाजों सा आऊंगा मैं...
जब कुछ ना रहेगा,तब सब कुछ बनकर आऊंगा मैं...
जब इस दुनियां में तुम्हारे लिए कुछ कम सा नज़र आयेगा..तब संसार बन कर तुम में समा जाऊंगा मैं..
बस तुम ज़रा सा खो जाना, ढूंढ कर तुम्हें, मैं ख़ुद भी मिल जाऊंगा...


© Anurag Dubey