...

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आखिरी इश्क़ ❤️
सुंदर नैन, मधुर स्वर ,चेहरा चांद से मिलता है।
आसमां में जो दूर था, अब सामने मेरे दिखता है।

उस चांद से मैं कहता नहीं सामने मेरे बैठी रहो,
पर सामने मेरे बैठी है, आखों से इश्क़ कहती है।

मैं भी ठहरा तारा उसका, रोशन उसको करता हूं।
आखों से वो कहती है, मैं आखों से सुनता हूं।

सुबह बीता, शाम हो गई; कब तलक यूं ही बैठे हम।
आखों ने सब बयां किया, होठों से तो बोलो अब।

उसने बोला आप कहो, मैंने बोला आप कहो।
पहली वो मुलाकात थी, फिर से आखों ने बात की।

अब मुझसे ना रुका गया, धीरे से उसके बाल छुआ।
कहा उसने 'क्या करते हो?', मैंने कहा 'इश्क़ जी'
उसने कहा 'अभी नहीं, अभी नहीं।'

नयन के उस पर्दे को मैंने, कर्ण के पीछे छोड़ दिया।
इश्क़ भी मैंने कर लिया, बात भी उसका रख लिया।

इस दफा इश्क़ की कहानी ये, आख़िरी इश्क़ हो गया।
मोहब्बत की गाड़ी थम गई, मोहब्बत का मुसाफिर रुक गया।

अब देखता हूं उसे मैं, रोज जिसे मैं लिखता था।
रोज मिलता हूं उससे अब, ख्वाबों में जिससे मिलता था।

सुंदर नैन, मधुर स्वर ,चेहरा चांद से मिलता है।
आसमां में जो दूर था, अब सामने मेरे दिखता है।।

© Rahul Raghav