...

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बेटियां

बंध सकेंगी तुम्हारी तभी मुट्ठियाँ।
साथ देंगी अंगूठे का ग़र उंगलियां।

प्यार सारा लुटाते हो बेटों पे ही
बेटियों के लिए फब्तियां, झिड़कियां।

थोड़ा इनको भी दो तुम अगर हौसला
क्या नहीं कर सकेंगी भला बेटियां।

कितने किरदार जीती हैं जीवन में ये
छोड़कर अपना घर द्वार ये बेटियां।

इनको उड़ने दो, मुट्ठी में पकड़ो नहीं
हैं तुम्हारे चमन की ही ये तितलियां।

© इन्दु