...

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जाने की जल्दी थी !!
मैं उसकी तलाश में था रहगुजार मे और
उसे मंजिल को पाने की जल्दी थी।

एक हसीन रात, चांद और एक सपना...
नामुकम्मल राह को गुजर जाने की जल्दी थी।।

'फकिरो के खिसे कभी खाली नही होते आदिल'
ढूंढते तो मिल ही जाते कुछ खरे सिक्के...
या अजायबघर पाने की जल्दी थी।

'बंजर जमीन और तपता रैगिस्तान.नजर तो आए बादल बारिशों के,
तुख्म निकाले ही सही, और उसे बरसकर जाने की जल्दी थी।
कोई तो मौसम मैं तेरे नाम कर जाता, "शायर"
खैर... हर मौसम को को बदल जाने की जल्दी थी।।


© shxayar