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शहर!!
#मयखाने
जब से हुई है मेरी आमद शहर में तेरे
मुझसे रूठे रूठे सारे मयखाने हैं
जब से हुई है आमद मेरी शहर में तेरे
मैं हूँ बहका बहका
भीग रहा हूँ प्रेम में तेरे
मैं हूँ चहका चहका
गली गली है तेरी खुशबू
मन को छूकर जाए
पागल सी ये मुझको कर दे
मुझे बहुत तड़पाये
विरहा की पीड़ा में जलती
मैं और ये तन्हाई
नीद प्यास मेरी ये उड़ाए
जबसे हम तेरे शहर में आए
हम अच्छे थे गाँव में अपने
जिसे छोड़ शहर को
नही रास आए मयखाना
नहि रास आती हैं गलियां
जबसे शहर में आए
अजनबी लगते हैं सब
अपना नही है कोई
तुम सँग मोह लगाकर हम
छोड़ गाँव जो आए
मिलता है सब कुछ यहाँ पर
मिलता नही कोई अपना
बेगाना सा लगता है
शहर हो जैसे सपना
इससे तो अच्छा था
गाँव पुराना अपना
कच्चे मकान भले ही थे
लोग वहाँ थे अपने
रोटी थी वहां पर सस्ती
नमक और चटनी थी
यहाँ भूख पर बर्गर मिलता
और बोतल का पानी
छिन गयी आजादी अपनी
महँगा हुआ पानी
जबसे आए शहर
छूट गया वो बचपन
जिसके सँग हम बड़े हुये थे
टूट गये वो रिश्ते
शहर शहर हम भटक रहें हैं
अपनों को हम तरस रहे हैं
जबसे शहर हम आए

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