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गज़ल- घर पूछता है, ठिकाना मेरा।
ना आना है, ना जाना मेरा।
घर पूछता है, ठिकाना मेरा।
अभी जो गया है, कतरा के मुझसे
दोस्त था बड़ा वो, पुराना मेरा।
देखकर उसे, क्यूं मुझको ऐसा लगा
वक्त था कभी तो, सुहाना मेरा।
कर रहा होगा, कोई इंतजार घर पर
चलता नहीं अब ये, बहाना मेरा।
बिछड़ा है तू, कुछ इस तरह मुझसे
क्या खोना है अब, क्या है पाना मेरा।
© वरदान
घर पूछता है, ठिकाना मेरा।
अभी जो गया है, कतरा के मुझसे
दोस्त था बड़ा वो, पुराना मेरा।
देखकर उसे, क्यूं मुझको ऐसा लगा
वक्त था कभी तो, सुहाना मेरा।
कर रहा होगा, कोई इंतजार घर पर
चलता नहीं अब ये, बहाना मेरा।
बिछड़ा है तू, कुछ इस तरह मुझसे
क्या खोना है अब, क्या है पाना मेरा।
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