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तन पिया घर कैसे जाए रे...
तन पिया घर कैसे जाए रे...

बचपन खेली नाजो से पली आज देखो मैं पिया घर चली,
मम्मी की दुलारी, पापा की परी आज मैं पराई हो चली।
कल था सब अपना आज बन चुका है एक अच्छा सपना,
कल तक तेरे घर की लक्ष्मी आज किसी और की हो जाऊंगी मैं कल पराई हो जाऊंगी,
इतने साल बिताए यहां बचपन से जवानी का सफर है किया तय अब चली तेरी यह गुड़िया....
मेरी यादें भी यही, मेरे सपने यही है बुने मैंने,
मन तो यही है मेरा,
तन पिया घर कैसे जाए रे।
सात फेरों से आंगन छूटा,
मिला है बसेरा नया,
कल कहती घर जिसे आज पराया हुआ
अब मुझे मेरा नया बसेरा सजाना है,
मुझे कल पिया घर जाना है।
© poemfeast
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