...

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शिद्दत __ !!
दिन रात शिद्दत से चाह था तुझको
रात भर याद करके रोया था तुझको
जो भूल बैठे थे तुम हमें
हमने हर लम्हे में पाया था तुझको

ख्वाब आसमान के देखता नहीं में
पर कल सपनों में देखा था तुझको
याद आता है हर बीता हुआ कल मुझे
क्यों? इतनी शिद्दत से चाह था तुझको

देख हैरान है जमाना भी मुझको
मेरी मोहब्बत ने मशहूर किया इतना तुझको

मैं गुम था किसी शोर में शायद
फिर मेरे दर्द-ए-रुसवाई ने याद किया तुझको
तू रेत सा फिसल जाता है मेरे हाथों से
और फिर मैं प्यासा सा ढूंढता हूं तुझको

बिछड़ जाते हैं बिछड़ने वाले
हमने तो हर पल साथ पाया था तुझको
ख्यालों में ही सही इक कोना वो भी था
जिसमे मेने शिद्दत से रखा था तुझको




© adhoore khwab