...

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दिल की उम्मीद
दिल ने... ना की थी किसी से भी उम्मीद कभी,
तुम मिले, तो लगा... मिल गया सहारा।

समय बीता तो पता चला, तुम भी औरों की तरह निकले,
भरोसा कर के फंस गया यह दिल बेचारा।।

हौंसला क्या बढ़ाओगे, तुम तो हर बात पर गलतियां गिनवाते हो।
हर छोटी सी गलती पर भी... तुम हम पर यूं चिल्लाते हो।।

तेरे शब्दों के बाण से , मेरा आत्मसम्मान हारा।
आत्मविश्वास पाने आया था, हो गया खामोश, खो गया कही फिर से यह दिल बेचारा।।

पाना चाहते थे एक हमसफ़र, जो जन्म जन्म का होता साथी हमारा।
दिल चाहता था पाना एक ठीकाना, एक सहारा।
अब हार कर बैठ गया फिर से एक दिल बेचारा।।

© Vasudha Uttam