...

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प्रेम की अभिलाषा
प्रेम तो पवित्र था
वासना से मुक्त था
प्रेम स्वार्थहीन था
प्रेम शब्दहीन था
बिना कहे समझ लिया
जिसे आंखो ने ही पढ़ लिया
प्रेम एक भाव था
जिसे मन ही मन समझ लिया
प्रेम तो हृदय में था
दो प्रेमियों के वश में था
जिसमे खुद की हार थी
जो हार भी कमाल थी
वो प्रेम अब कहा गया
वो प्रेम क्यों मिला नही
या प्रेम अब रहा नही
जो प्रेम है तो मिला ही दो
जीवन को मेरे तार दो
नही रहा जगत में कुछ
जीवन को तुम सवार दो
जो पढ़ सके मेरे मन को भी
किसी ऐसे से मिला ही दो......🫣🫣☺️
© priya writes....✍️