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ग़ज़ल
उसे भी इश्क़ हो गया जिसे बड़ा गुमान था
मैं उसके दरमियान हूँ जो मेरे दरमियान था
जुदा है रूह-ओ-जिस्म भी बचा न कुछ तिलिस्म भी
तबाह हो गया हसीं जो अपना गुलसितान था
यक़ीन कर ये वाकया मेरे भी साथ है हुआ
मुझे किसी का शौक़ था मुझे किसी का ध्यान था
मिली सभी को एक सी ये मंज़िलें ये रहगुज़र
जो मेरा आसमान है वो तेरा आसमान था
मुझे भी इस जहान ने बला के ग़म अता किये
ख़ुदा मेरे वजूद पे ज़ियादा मेहरबान था !
© हर्ष
मैं उसके दरमियान हूँ जो मेरे दरमियान था
जुदा है रूह-ओ-जिस्म भी बचा न कुछ तिलिस्म भी
तबाह हो गया हसीं जो अपना गुलसितान था
यक़ीन कर ये वाकया मेरे भी साथ है हुआ
मुझे किसी का शौक़ था मुझे किसी का ध्यान था
मिली सभी को एक सी ये मंज़िलें ये रहगुज़र
जो मेरा आसमान है वो तेरा आसमान था
मुझे भी इस जहान ने बला के ग़म अता किये
ख़ुदा मेरे वजूद पे ज़ियादा मेहरबान था !
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