...

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पहला कदम...!
माना मुश्किल है बहुत
पहला पहला कदम बढ़ाना!
उधेड़बुनों के बीच
अवकाशों को ढूंढ लाना!!

मन के गहरे गर्त में पस्त पड़े हैं
सब हौसले!
अंतर्मन दुविधा में डूबा,
ले कैसे सही गलत के फैसले!!.

जीवन के उस पार बुलाता है कोई
रह रहकर मुझको!
'जीवन के इस पार कर्तव्य हैं"
'रोके कोई यह कहकर मुझको!!

आसमान का विस्तार पुकारे
हैं संभावनाएं बहुत!
पैरों ने पृथ्वी को जकड़ा,
मन में पलतीं दुर्भावनाएं बहुत!!

बहुत सोचकर आखिर...
मैंने खोल दिए मेरे आसमान के छोर!
झुक-झुककर कब तक जीना,
जीलूँ जब तक बचा है जीवन का आखिरी कोर!!

हे-मन अब तुम देख रहे हो अनंत,
दृष्टि का विस्तार बढ़ा है!
पहला कदम बढ़ाए बिना
कहो कब कोई उन्नति की सीढ़ी चढ़ा है!!

सुन साथी, ख़्याति मेरा ध्येय नहीं है
अलख प्रेम-सौहार्द-विश्वास जगाना है!
प्रीत-पुष्पित-अंतस्तल से
दुनिया के उपवन को महकाना है!!