...

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माँ..
माँ ... हूं दूर.. तू है अकेली..
था बच्चा सिने से लगा रखती थी
मेरे गीले किए बिछोनों पर
ना जानें तूने रातें कितनी..
जाग कर ही गवांई थी..

मेरी हर तकलीफ़ को जीती थी तू माँ
जानता हूं.. उस दौर का साक्षी रहा हूं मैं..
देखा है.. महसूस किया है..
मेरे लिए कैसे तड़पती थी तू माँ ,
बदनसीब हूं..
पेट की सुधा मिटाने को तुझसे दूर हूं..

पर आज भी माँ हर तकलीफ़
तू अकेले ही सह लेती है
कुछ भी ना मुझसे कहती है
तुझे दुःखी या परेशान देख समझ
मैं जो परेशान हो जाता हूं
इसलिए ही तो तू कुछ ना मुझे बतलाती है

मुझसे जब बात करती है चहक लेती है
अपनी तकलीफों को.. हँसी में छिपा
खुद ही उल्टा तू.. मुझे ढांढस बंधाती है..
माँ तुझे साथ है मेरे रहना..
अभी उम्र इस में भी..
मुझे तुझसे बहुत कुछ है सिखना..

माँ तेरे खुरदुरे हाथ
आज भी उसी तरह मखमल से कोमल हैं
याद है मुझे या कहूं तो भूखा ही सो जाता हूं
तू जानती है माँ..
आखरी निवाला तेरे हाथों ही खा
मेरा पेट भरता था..

अपनी परेशानियों में..
मैं.. माँ.. आज भी रो दिया करता हूं
अब मेरे आसूं ना कोई देख पाता है
ये तेरे आँचल का सहारा पाने को
पूरी गालों का रास्ता तय कर
शर्ट पर ही टपक विलीन हो जातें हैं..

आज भी मां तेरे नाकों की तरह ही
मेरी नाक भी लाल हो जाती है
पर तू इन लाल हुईं नाकों का
कारण जानने को कहां पास होती है..

मां लिखने को तुझपे
ये ज़िंदगी भी कम है
बस अरमान एक ही है मां..
अगला जन्म भी यदि मानव का हो
तो कोख तेरी ही मुझे नसीब हो..
मेरा पापा भी ऐसा ही प्यारा तुझसा ही हो..

जो सेवा तेरी इस जन्म ना कर पा रहा
माँ वो उधार रहे.. मुझ पर..
मैं ना इससे मुक्ति पाना चह रहा..
मैं उत्तरदित्यवों के साथ
आप दोनों की सेवा का भी अवसर चह रहा...

तेरे हाथों का आशिर्वाद आज भी ज़रूरी है
तेरा प्यार से मेरा नाम ले बुलाना माँ..
आज भी बहुत अच्छा लगता है मुझे..
© दी कु पा