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मजबूरी
#मजबूरी

झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
है कुछ नही लेकिन दिखाना जरूरी है ,
अपनी खुशियों के खातीर क्या किसी की जिंदगी तबहा करना जरूरी है ,

है मोहब्बत तुमसे लेकिन छुपाना जरूरी है ,
क्या करे क्या कहे न जाने कैसी ये मजबूरी है ।
ख्वाब तो बहुत है लेकिन पूरा कोई नही , कमभक्त कलम तो थी लेकिन कोरा खगज कभी सेयाही से भीगा नही हुया , अरमा तो कही ते लेकिन पूरा कोई नही हुआ ;

नजाने कैसे ये मजबूरी है , है कलम नही लेकिन लिखना जरूरी है , लिखना जरूरी है , नजाने कैसी ये मजबूरी है।
© copyrightuzma8067