...

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मक्कार ना होना कवि
कवि तू मक्कार है
और
तुझे धिक्कार है

तूने शब्द गढ़े
रस और अलंकार मढ़े
भाव भी पिरोए महान होने को
लेकिन कमाए सिर्फ खोने को

तू दूसरों की नजर में सुरीला है
लेकिन
तेरा मन चंचल और रंगीला है
चरित्र और कर्म ही
सबसे बड़ा सुर है
और
काव्य है कवि
जो लिखता है , गाता है
पहले खुद कर, निभा अभी !

हां, वर्तमान में श्रम
किंतु भविष्य उज्ज्वल रे
तू अगर स्वयं भी चुन सके
भूमि ऊसर और कर सके उर्वर
चुन सके पथ आग रे
जीने को जाग रे!

क्षमा कर और आगे बढ़
अपने अंगों के छल वाले को
मधुर, प्रिय बन कल गाने को
गैरों के छल को कुचल
कर उन्हें भूतल
आग पर चलना तो होगा
नींद छोड़ जगना तो होगा
विभूति


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