...

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Ghazal: असर करने लगी है
बरसों पहले दी थी जो वो बद दुआ अब असर करने लगी है
किसी की नाराज़गी किसी की बेरुखी हममें घर करने लगी है

तुम ये देखते तो यकीनन रो पड़ते ठीक मेरी ही तरह के कैसे
मेरी गुजरी हुई रातें मेरे आने वाले कल की फिकर करने लगी है

वक्त ने कभी मेरे ज़ख्म मांगे थे मुझसे उन्हें भरने के लिए अब
देखा तो उनमें मुझसी सैकड़ों पतंगें अपना बसर करने लगी हैं

इस साल का वादा था मुझे खुश रखने का ज़िंदगी का मगर
वो इस साल पिछले साल से ज्यादा तितर बितर करने लगी है

अब दूरियां बनानी फिर निभानी है उस ख़ुदा के बंदे से मैंने
मेरी मौजूदगी जिसके बहते हुए लहू को ज़हर करने लगी है

इन्हीं नजदीकियों का डर था इन्हीं फांसलो का डर था हमें
तुम्हारी गुमशुदगी आज कल जिनका जिकर करने लगी है

हम भी हमको लेकर मौत के दर की भीड़ में खड़े हो जाएंगे
वो सभी के लाइलाज़ ज़ख्मों का इलाज अगर करने लगी है

Pooja Gaur
© Pooja Gaur