...

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माँ तुम्हारी याद बहुत आती है...
निकलता है सूरज हर दिन
और फिर होते ही शाम ढ़ल जाता है,
पर तेरे आने का इंतजार,
मेरा हाथ थामे वहीं खड़ा रह जाता है,
हूँ वाक़िफ़ मै इस कड़वी सच्चाई से,
पता है सब कुछ बहुत बारीकी से मुझको,
पर फिर भी ना जाने क्यों दामन इस उम्मीद का छूटता नही,
तुम आओगी ना लौट कर कभी अब भी ये मन मानता नही_ll

दिन बीते, महीने बीते अब तो साल भी बदल गया,
लगने लगी बोझ कभी खुद की साँसे भी पर इंतजार तेरा कभी बोझिल लगा नही,
ढ़ल जाती है शाम भी
फिर सितारों से चमचमाती रात आती है,
थक चुकी मेरी आँखों को अपने साथ सुलाती है,
सपने मे भी ये बेचैन आँखे तुम्हे बुलाती हैं,
देख कोई परछाई भी उससे लिपट जाती है,
माँ हर पल मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है_!!
© दीपक