आखिरी मुलाक़ात ...
इस बेरंग जिंदगी में रंग भरने आई थी ,,
मुझे नफरत से प्यार सिखाने आई थी ,,
हां वो मेरी दोस्त थी पर दोस्त से बढ़ कर थी
हम दोस्त थे पर वो इश्क निभाने आई थी
उसने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था
दोस्ती के वादों को इश्क का नाम बताया था
उसने मुझसे इजहार किया था
मैंने उसके इज़हार को इंकार किया था
मेरे उसूल कुछ ऐसेे जिनमें ले चला था
जिससे दोस्ती उससे प्यार करना मना था
पर वो पागल इस कदर पागल थी
मैं दोस्ती निभाऊं उसे इश्क निभाना था
मैं निभाता रहा दोस्ती उसके साथ
पर इश्क निभा के मेरा दिल धड़काया था
पर कुछ गलतफहमी ने हमें जुदा किया था
उसे बीच सफर में छोड़ने को मजबूर हुआ था
उसने रोका था पर मैं रुका भी नहीं था
उसे आखिरी बार मुड़ के देखा भी नहीं...
मुझे नफरत से प्यार सिखाने आई थी ,,
हां वो मेरी दोस्त थी पर दोस्त से बढ़ कर थी
हम दोस्त थे पर वो इश्क निभाने आई थी
उसने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था
दोस्ती के वादों को इश्क का नाम बताया था
उसने मुझसे इजहार किया था
मैंने उसके इज़हार को इंकार किया था
मेरे उसूल कुछ ऐसेे जिनमें ले चला था
जिससे दोस्ती उससे प्यार करना मना था
पर वो पागल इस कदर पागल थी
मैं दोस्ती निभाऊं उसे इश्क निभाना था
मैं निभाता रहा दोस्ती उसके साथ
पर इश्क निभा के मेरा दिल धड़काया था
पर कुछ गलतफहमी ने हमें जुदा किया था
उसे बीच सफर में छोड़ने को मजबूर हुआ था
उसने रोका था पर मैं रुका भी नहीं था
उसे आखिरी बार मुड़ के देखा भी नहीं...