...

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ज़िन्दगी
नामों निशाँ को जोड़ने का जुनूँ चढ़ाके,
करती है सौ हदों को यूं पार ज़िन्दगी।

ज़मीं से आसमां तक रहे रोज़ ताकती,
बुझती नहीं सुलगने के बाद ज़िन्दगी।

सरताज बदलते है हर सिफ़त में जानिब,
फिर भी रहे बहरूप बेनक़ाब ज़िन्दगी।

सौदों की सभी फ़ेहरिस्तें ताकीदगी करें,
बिखर के मानेगी दावेदार ज़िन्दगी।

गम छोड़ता न साया पाकीज़गी का है,
क़त्ल होके ही सम्भलेगी सरे बाज़ार ज़िन्दगी।
© वाणी