...

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कहीं दूर से जब
क्यों दिल को मिलता राहत -ओ- आराम नहीं है,
तीरगी के आलम में कहीं रौशनी का नाम नहीं है।

कहीं दूर से जब आती है सदाएं हमारे प्यार की,
तेरी यादों के साए में भी मिलता आराम नहीं है।

मेरी छोटी सी भूल को गुनाह बना डाला तुमने,
तुम ही बताओ दुनिया में कौन बदनाम नहीं है।

ज़़र्द पत्तों की तरह दर- बदर हो चले हैं हम,
तिरी बज़्म में शायद हमारा अब काम नहीं है।

जफ़ा करके भी मुझसे ही हर सवाल किया तुमने,
कैसे कह दूँ जहां ने लगाए मुझ पर इल्ज़ाम नहीं है।

हर मोड़ पर कदम क्यों डगमगा जाते हैं आजकल,
तेरी आगाज़़-ए-बेरुखी का क्या कोई अंजाम नहीं है।