...

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पिता
बरगद से अडिग पिता, सदा ही घर की शान रहे।
बढ़कर उनसे दिखा न जग में जिसे हस्ति महान कहें।

कभी न थके वो कभी न रुके हैं, ऐसी अनोखी शक्ति हैं।
हलचल भरे घर में पिता तो ख़ामोश अभिव्यक्ति हैं।

पिता ही मान,पिता अभिमान, पिता से मिलती पहचान यहां,
माँ गर है धरती अपनी तो ,पिता हैं अपने आसमान यहां।

पिता से संवरता बचपन अपना,समुद्र सा गहरा प्यार है जिनका,
बच्चों के लिए संघर्षरत निरन्तर,गगन से ऊंचा अरमान हैं इनका

संकट के बादल जब भी छाए, पिता हमेशा साथ रहे ,
ख़ुशी मिली या गम हो हमें, पिता हमेशा याद रहे।

पिता के कंधों ने ही तो घर का अक्सर भार सहा है,
इनसे ही माँ का मेरी हरदिन अनुपम श्रृंगार रहा है।

कभी ये डांटे,कभी पुचकारें,माँ के क्रोध से हमें बचाएं।
रोते हुए जब घर हम आयें, पिता ही पहले गले लगाएं।

थक कर खुद जब घर को आयें, बच्चे देख वो मुस्काये।
फेंकें थैला झट से अपना,गोद में लें फिर उन्हें उठाए।

लाख दर्द हो तन में मगर, कभी किसी को न बतलाते।
चिन्ताओं को कर दरकिनार ,बच्चों का घोड़ा बन जाते।

महिमा क्या करूं मैं उनकी?
तुलना नहीं इस जग में जिनकी।

पिता से ही सपनों को अपने पंख मिलता है।
बिन इनके अधूरी रहती हर इक की दुआ है।

हाथ जोड़ विनती है सबसे, पिता को दुखी,न निराश करना,
पितृ दिवस का दिन बस क्यों?हर दिन उनको सम्मान है देना।

GLORY ❤️
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