समाजवाद :-निखिल ठाकुर
युं कब तक तुम जुल्म सहते रहोगे।
आखिर अपने असुलों के लिए तो लडना होगा।।
यूं ही मुकाम ए मंजिल नहीं मिलती है ।
हे राही गुलामी ए जिन्दगी को मिटाना पडेगा।।
यूं ही चंद टुकडो से आजादी नहीं मिली है।
उम्र ए जिन्दगी को आग में जुलसाना पडा।।
कब तक स्वार्थ ए जिन्दगी अपनों से बैर रखोगे।
कुछ तो अब मिलकर चलना होगा साथ ।।
कर ले करवां जज्बा ए...
आखिर अपने असुलों के लिए तो लडना होगा।।
यूं ही मुकाम ए मंजिल नहीं मिलती है ।
हे राही गुलामी ए जिन्दगी को मिटाना पडेगा।।
यूं ही चंद टुकडो से आजादी नहीं मिली है।
उम्र ए जिन्दगी को आग में जुलसाना पडा।।
कब तक स्वार्थ ए जिन्दगी अपनों से बैर रखोगे।
कुछ तो अब मिलकर चलना होगा साथ ।।
कर ले करवां जज्बा ए...