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समाजवाद :-निखिल ठाकुर
युं कब तक तुम जुल्म सहते रहोगे।

आखिर अपने असुलों के लिए तो लडना होगा।।

यूं ही मुकाम ए मंजिल नहीं मिलती है ।

हे राही गुलामी ए जिन्दगी को मिटाना पडेगा।।

यूं ही चंद टुकडो से आजादी नहीं मिली है।

उम्र ए जिन्दगी को आग में जुलसाना पडा।।

कब तक स्वार्थ ए जिन्दगी अपनों से बैर रखोगे।
कुछ तो अब मिलकर चलना होगा साथ ।।

कर ले करवां जज्बा ए हौंसलें को बुलंद।

फेरबी ए मतलबी चेहरों का नकाबा हटना होगा।।

शर्म ए लज्जा की चादर कब तक ओढोगे।

दरंदे ए दरिदंगी को अब जलाना होगा ।।

नजर ए गुम से कब तक देखते फिरोगे ।
अपनी ही माँ -बहिन का शोषण ।।

कर ले अब आगाज ए जिन्दगी का करवां।

अब तो मशाल ए अग्नि हाथ में लेनी होगी।।

यूं सहम कर कब तक डरते फिरोगे जहां में।

जुल्म ए साया को अब मिटाना होगा ।।

कब तक यूं ही चुप कर शर्म ए नजर से देखोगे।
अपने ही समाज की स्त्री का शोषण ।।

अब तो मिलकर आवाज बुलंद करके।

जाहिलों का सर कलम करना होगा ।।।

निखिल ठाकुर #
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