नारी सशक्तिकरण
#AloneInCrowd
रिश्ते नातेदार सब थे,
उस विवाह समारोह में,
लेकिन मैं था,
फिर भी अकेला।
पापा कह रहे थे ताऊजी को,
कैसा बदल गया जमाना,
वर आज पहले से ही,
वधू को चाहता है आजमाना।
पहले,लोक लाज के डर की यह सीमा थी,
आंखें रहती थीं नीचे,
और जबान मुंह के अंदर बंद थी।
आगे बोले वो,
वरमाला पूर्व देखा न था,
हमने अपनी जीवन संगिनि को।
सुन कर बात उनकी,बोले ताऊजी,
लड़कियाँ कहाँ निकलती थी बाहर,
चौका चूल्हा और गृह कार्य,
इन्हीं...
रिश्ते नातेदार सब थे,
उस विवाह समारोह में,
लेकिन मैं था,
फिर भी अकेला।
पापा कह रहे थे ताऊजी को,
कैसा बदल गया जमाना,
वर आज पहले से ही,
वधू को चाहता है आजमाना।
पहले,लोक लाज के डर की यह सीमा थी,
आंखें रहती थीं नीचे,
और जबान मुंह के अंदर बंद थी।
आगे बोले वो,
वरमाला पूर्व देखा न था,
हमने अपनी जीवन संगिनि को।
सुन कर बात उनकी,बोले ताऊजी,
लड़कियाँ कहाँ निकलती थी बाहर,
चौका चूल्हा और गृह कार्य,
इन्हीं...