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नारी सशक्तिकरण
#AloneInCrowd

रिश्ते नातेदार सब थे,
उस विवाह समारोह में,
लेकिन मैं था,
फिर भी अकेला।
पापा कह रहे थे ताऊजी को,
कैसा बदल गया जमाना,
वर आज पहले से ही,
वधू को चाहता है आजमाना।
पहले,लोक लाज के डर की यह सीमा थी,
आंखें रहती थीं नीचे,
और जबान मुंह के अंदर बंद थी।
आगे बोले वो,
वरमाला पूर्व देखा न था,
हमने अपनी जीवन संगिनि को।
सुन कर बात उनकी,बोले ताऊजी,
लड़कियाँ कहाँ निकलती थी बाहर,
चौका चूल्हा और गृह कार्य,
इन्हीं गुणों में निपुण कन्या,
हो जाती थी स्वीकार्य।
खत्म हो गई आज सब हया,
अब है पहले से ही,
साथ घूमना और साथ खाना,
जो मापदंड है परखने का।
विवाह पूर्व मिलना,
और बातें करना,
आजकल का कैसा
है जांच-परख का यह पैमाना।
उनकी बातें सुन सुन,
उकता गया मैं,
सोच रहा,पापा संग आकर,
आज बहुत पछताया मैं।
कोई समझाओ उनको,
क्या बातचीत से,
होती मर्यादा भंग,
या साथ खान पान से,
होता शील भंग।
कौन समझाऐ उनको,
आज की नारी,
नहीं रही बेचारी,
वह तो जमीं पर ही नहीं,
नभ पर भी,
करती है सवारी।
रह न पाए हम अब चुप,
कहने को था बहुत कुछ,
पर इतना ही बोले,
पापा,बदल रही है सोच,
बदल रहा है जमाना।
सरकार ने भी अब,
लड़का लड़की को बराबर है माना।

#alone in crowd

© mere alfaaz