हे महेश्वर! खेल तुम्हारे अनोखे से
जगत पिता महेश्वर मेरे,
ये कैसी शक्तियां तुम धरे।
एक ओर तू भक्ति में थामे,
खींची आती मैं तेरी ओर,
दूजी ओर मन को भटकाए।
कभी बातों में, कभी कामों में,
तेरे खेल हैं ये अनोखे से,
मानती हूं, फिर तू ही...
ये कैसी शक्तियां तुम धरे।
एक ओर तू भक्ति में थामे,
खींची आती मैं तेरी ओर,
दूजी ओर मन को भटकाए।
कभी बातों में, कभी कामों में,
तेरे खेल हैं ये अनोखे से,
मानती हूं, फिर तू ही...