...

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मैं क्या हूं
मैं तो बस बहता पानी हूं
अपने प्रेम की कहानी हूं
पुष्प सा ये जीवन मेरा
एक दिन मुरझानी हूं !
मैं तो बस बहता पानी हूं...

हृदय में बस नाम बहता हैं
रूह में बस ध्यान रहता हैं
शरीर मेरा मेहमान लगता हैं
कल्प मात्र जहांन लगता हैं
जैसे कल्प की छोटी सी रूहानी हूं
मैं तो बस बहता पानी हूं...

कुछ खोया है मेने तो बहुत पाया हूं
इस जगत में दीप जलाने आया हूं
भीतर की अलख गुजरे तेरे नाम से
मैं तो बस अपने प्रीतम की माया हूं
बहता जीवन मेरा कल कल की रवानी हूं
मैं तो बस बहता पानी हूं...

कनका सी ये रूह मेरी विराट धरा तेरी
प्रेम का दीप प्रज्ज्वलित कराने तुम आए
टली राह अपनी मंजिल की लगा जैसे
मनोज के जीवन में पुष्प खिलाने तुम आए
आभार सत्कार तेरा सतगुरु मैं तेरी ही मस्तानी हूं
मैं तो बस बहता पानी हूं
© Manoj Vinod-SuthaR