...

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फ़ुरसत
फुरसतों में हूँ, प्रभुजी...
आप चाहें तो, मिलने आ सकते हैं,
के इन नन्हें कदमों के लिए, ये रस्ता तनिक कठिन लगता है।

उल्फ़तों में हूँ,प्रभुजी...
आप चाहें तो मुझे सुलझा सकते हैं,
के तेरी माया,तेरे सिवा किसी का... कहना नहीं मानती।

गुमनाम हूँ, प्रभुजी...
आप चाहें तो हमें अपना बना लें,
के हम जो आपके नहीं, तो फ़िर किसी के नहीं.. कभी नहीं...
.अपना बना लीजे,प्रभुजी।

अहंकारी हूँ, प्रभुजी...
आप चाहें, तो निष्पाप कर सकते हैं..
के मोह भी तेरा,माया भी तेरी,राग भी तेरा, बैराग भी तेरा..
हम भी तो आपके ही हैं, प्रभुजी।

ऐसी सुंदर रचना के लिए आभार प्रभुजी।🇮🇳🌍🐚🙏
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© nikita sain