बचपन, जवानी और बुढ़ापा...
बचपन में वो
खिलौने के साथ खेलता है
हमउम्र के साथ लड़ता है
सबसे ज्यादा वो
मां बाप से प्यार करता है
ना किसी नफरत की गुंजाइश
ना वो करता है किसी की बुराई
अपनी दुनिया में मसरूफ
पल में रोता तो
वो पल में हंसता है
छोटी सी उसकी दुनिया
उसी में वो खुश रहता है
ना किसी बात की फिक्र
पिता के कंधे बैठ
खिलौनों का करता है जिक्र
वो तो मां की गोदी में सोता है।।
बचपन बीतता वो
वयस्क बन जाता है
खिलौने छोड़ वो
बड़े उपकरणों में व्यस्थ हो जाता है
मां बाप के साथ साथ वो
औरों की भी परवाह करता है
बड़ा होते ही
वो तो सयाना बन जाता है ...
खिलौने के साथ खेलता है
हमउम्र के साथ लड़ता है
सबसे ज्यादा वो
मां बाप से प्यार करता है
ना किसी नफरत की गुंजाइश
ना वो करता है किसी की बुराई
अपनी दुनिया में मसरूफ
पल में रोता तो
वो पल में हंसता है
छोटी सी उसकी दुनिया
उसी में वो खुश रहता है
ना किसी बात की फिक्र
पिता के कंधे बैठ
खिलौनों का करता है जिक्र
वो तो मां की गोदी में सोता है।।
बचपन बीतता वो
वयस्क बन जाता है
खिलौने छोड़ वो
बड़े उपकरणों में व्यस्थ हो जाता है
मां बाप के साथ साथ वो
औरों की भी परवाह करता है
बड़ा होते ही
वो तो सयाना बन जाता है ...