...

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हम भूल जायेंगे एकदिन
हम भूल जायेंगे इक रोज़;
वो सारे बलिदान..
वो वात्सल्य..
जो वो बिना किसी शर्त ,
लुटा रहे हैं
खुले हाथो से
सिर्फ हमारी मुस्कान की खातिर
और हम खुदगर्ज,
शायद कह देंगे इक दिन
की आपने तो बस फ़र्ज़ निभाया
हम बस कृतघ्न बने,
दबे रहेंगे ताउम्र पितृऋृण तले..!