...

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वसीयत
अपने पूरे होश-ओ-हवास में
लिख रही हूँ आज मैं
वसीयत अपनी

मेरे मरने के बाद
खंगालना.. मेरा कमरा
टटोलना.. हर एक चीज़
घर भर में ..बिन ताले के
मेरा सामान.. बिखरा पड़ा है

दे देना... मेरे ख़्वाब
उन तमाम.. स्त्रियों को
जो किचेन से बेडरूम
तक सिमट गयीं ..अपनी दुनिया में
गुम गयी हैं
वे भूल चुकी हैं सालों पहले
ख़्वाब देखना

बाँट देना.. मेरे ठहाके
वृद्धाश्रम के.. उन बूढों में
जिनके बच्चे
अमरीका के जगमगाते शहरों में
लापता हो...