...

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माचिस और रोटियां!
जब जला देती है चूल्हा
किसी झोंपड़ी के भीतर,

और उतरती हैं फूली हुई
नरम नरम रोटियां खास,
तकरीबन एक हफ्ते बाद,

मुस्कुरा देते हैं बुझे से चेहरे
उन बच्चों के जो भूखे थे
छह सात दिनों से लगातार,

हो रहा था गुज़ारा उनका
केवल पानी पी- पीकर,
पेट-पीठ जुड़कर एक से
हो गए लगते थे उनके,

बड़ी ख़ास, बड़ी बिंदास
लगती हैं सचमुच वो चंद
तीलियां माचिस की और
वो नरम नरम गरम रोटियां,

सचमुच होतीं हैं बड़े काम की दोनों,
ज़िन्दगी को ज़िंदा रखने की खातिर!

—Vijay Kumar
© Truly Chambyal