...

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अब कैसे वापस जाऊं मैं
रिश्ता निभाते निभाते बहुत दूर निकल आई मैं
अब कैसे वापस जाऊं पहली की उन दिनों में !

उसी के साथ ही सुकून मिलता हैं मुझे
भले ही वो तकलीफ़ ही क्यों न दे मुझे ;

वादा किया था मैंने हर सुख दुख में साथ निभाऊंगी उसकी
मैं रह गई पहले जैसी ही लेकिन फिदरत बदल गया उसकी ;

आजकल कम होती हैं बातें हमारी
ज्यादा होती हैं गलतफ़हमियां हमारी ;

अब वक्त गुजरता हैं हमारी अजनबियों की तरहा
और वो हर दिन बदलता गया हैं मौसम की तरहा ।।

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