...

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बुरा क्यों माने...
अफसोस का बुरा क्यों माने,
हम बुरे को बुरा क्यों माने.!!

भरोसे की इमारत तोड़ गए वो,
हम नादानियों का बुरा क्यों माने..!!

चालाक जो काबिल-ए- तारीफ,
अपने ऐतबार का बुरा क्यों माने.!!

जीते वो बाज़ी मुक्कदर उसका,
हम क़िस्मत का बुरा क्यों माने..!!

है वक़्त का फ़ैसला मुझे मंजूर,
बुरे वक़्त का बुरा क्यों माने..!!

ठहरा नही जो वो भ्रम होगा,
अंधियारे का बुरा क्यों माने..!!

© प्राची मिश्रा "जिज्ञासा"

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