...

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मुशीबतें
मुशीबतें लाख तोड़ी कमर मेरी मगर परेशान नहीं हुआ।
तेरे घर के बगल में घर था मेरा भी ,मगर कोई जाम ना हुआ।
ना तुझसे ईश्क था मुझको नहीं कोई शिकायत थी।
मुहल्ला रात दिन घुमा मैंने ,मगर बदलाम नहीं हुआ।
जुदाई जामेईश्क पीऊं या फिर बदलाम हो जाऊं।
कयी रातें गयी तनहा मेरी, कोई निगहबान ना हुआ
मुशीबतें लाख तोड़ी कमर मेरी मगर बदलाम नहीं हुआ।
(स्व रचित-अभिमन्यु)