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सुसंगत स्वप्न ही ढलते हैं यथार्थ में

गिरि ,सिंधु ,धरा,गगन
नाप रहा व्यथित मन,
मंगल की तलाश में ,
खाली हाथ लौटे कैसे
निराश ,हताश से !
शायद मिल जाए जीवन रहस्य
या छिपा आदिम स्त्रोत कोई कि
संवर जाए जिन्दगी बेतरतीब सी !!

मायावी दुनिया में कहाँ करना होता कर्म
वहाँ तो है स्वर्गिक सुख आराम ही आराम
बढ़ता है अकर्मण्य मन इसी दिवास्वप्न आस से !!

कितनी सुनहरी है ख्वाबों की दुनिया
पूर्ण हो जाती है इसमें अतृप्त आकांक्षाएं भी
नहीं होती है भटकन कोई ,नहीं है जद्दोजहद कोई
तेरा-मेरा की सीमाओं से परे ,
अनन्त असीम में उड़ता रहे जब तक मन ,
दौड़ते रहेंगे सतरंगी पथ पर मन के ये घोड़े !!

स्वप्न देखें ,तदनुरूप कर्म भी करें
अवश्यमेव साकार होंगे वांछित लक्ष्य भी ,
पर ...
असंगत कल्पना का अन्त नहीं कोई ,
जीवन में हक़ीकत से भागों न यारों ,
सुसंगत स्वप्न ही ढलते हैं यथार्थ में ,
बेसिरपैर की बातों में समय न मारों ,
हाँ जीतो समय को और जिओ सही अर्थ में !!

© MaheshKumar Sharma
16/3/2023

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