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शैलप्रिया
शैल से हुई दूर वीरह में, वो तो कलरव कर रही।
रुद्न को भी ना रूकी वो, अपने पथ पर चल रही।
मार्ग की हर बाधा से वो, ख़ुद ही अकेले लड़ रही।
पूजी गयी पथ में कहीं तो, कहीं प्रदूषित चल रही।
शैल से हुई दूर वीरह में, वो तो कलरव कर रही।
अब्धि में देखो वो अपना, अस्तित्त्व विलीन कर रही।
शैल की तृष्णा में जलती, वो सब की तृष्णा हर रही।
इक नदी की ये कहानी, शब्द बिना ही चल रही।
शैल से हुई दूर वीरह में, वो तो कलरव कर रही।
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