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मैं रेत अज़ल हूं ।
मैं रेत अज़ल हूं ।
अत्फ़ाल पहाड़ो का ।
गुमराह होता हूं । 
पैरो तले  
पवन के साथ 
नदियों के तट पर 
सागर संग किनारों का ।
अश्कों के बिना।
हीं रोता हूं ।

बे कस ,बेअदब 
मुट्ठीओं से फिसलता हूं ।
बददुआ किसका छाला
बाद मेघ चिढ़ाते हैं 
बुंद- बुंद को तरसा मै ,
कंटक कंठ सा मैं प्याला ।
ये मौसम भी तो जाहिल है ।
हर बार मुझे सतातें है ।
ठंढ़ी की शीतलहरी में 
गर्मी मे मुझे तपातें है ।

नातर्स मगन मुसाफिर हूं ।
कण - कण का कण-जाला ।
मै पूर्णवासी उजाला हूं ।
अमावस मे अंधा काला ।
एकता हीं नही मेरे कणों में 
फायदा सभी उठाते है ।
हवा की मर्जी चलती है।
पानी हमे बहाते है ।

किसे सुनाउँ मैं नालां ।
किसे बताऊं बेकसुरी ।
कि , मैं रेत अज़ल हूं ।
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अज़ल - अनंत काल से 
अत्फ़ाल - संतान
नातर्स - कठोर 

#रेत #पहाड़ #riteshtiwari
© Ritesh Tiwari