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अलविदा
अलविदा मेरे दोस्त,
बस यही तक था सफर अपना।
खुशियों और गम की सतरंगी,
बड़ा रंगीन रहा रहगुजर अपना।।
शुक्र है तुम्हे मिल गया कोई ,
खुदा खुशियां और वफा बक्शे।
हमे भी साथी मिल जाएंगे,
दिलवालो से भरा हैं शहर अपना ।।
तुम्हारी अपनी जरूरतें होंगी ,
मेरी अपनी शिकस्तगी है।
इस उम्र में गिना गलतियां,
क्यों जाया करे सबर अपना ।।
तुम भवरे हों, खुशी अहम है ,
हम परवाने जलना मरहम है।
ये इश्क वैसे भी न चलती,
दिल टूटता रहा अक्सर अपना ।।
बेमेल थे तेरे अंदाज और मेरे ईरादे,
तुझे लम्हे पसंद और मुझे जन्मों के वादे।
कोई रंजिश नही, क्यों की तुम भी सही ,
तुम अपनी गली ,हम चले डगर अपना ।
अब क्या ही मर्ज ढूंढे ?
मुहब्बत होती तो टिक जाती ,
दूरियां से हार दिल्लगी,
छोड़ चली दीवारों - दर अपना ।।
चलो अब इजाजत दो ,
सच कहूं तो, बोझ हल्का हो गया ।
ये अधपके सिलसिलों में सिमट कर,
तुम्हारे मर्जी पे गुजरा हर पहर अपना।।
© mukesh_syahi
बस यही तक था सफर अपना।
खुशियों और गम की सतरंगी,
बड़ा रंगीन रहा रहगुजर अपना।।
शुक्र है तुम्हे मिल गया कोई ,
खुदा खुशियां और वफा बक्शे।
हमे भी साथी मिल जाएंगे,
दिलवालो से भरा हैं शहर अपना ।।
तुम्हारी अपनी जरूरतें होंगी ,
मेरी अपनी शिकस्तगी है।
इस उम्र में गिना गलतियां,
क्यों जाया करे सबर अपना ।।
तुम भवरे हों, खुशी अहम है ,
हम परवाने जलना मरहम है।
ये इश्क वैसे भी न चलती,
दिल टूटता रहा अक्सर अपना ।।
बेमेल थे तेरे अंदाज और मेरे ईरादे,
तुझे लम्हे पसंद और मुझे जन्मों के वादे।
कोई रंजिश नही, क्यों की तुम भी सही ,
तुम अपनी गली ,हम चले डगर अपना ।
अब क्या ही मर्ज ढूंढे ?
मुहब्बत होती तो टिक जाती ,
दूरियां से हार दिल्लगी,
छोड़ चली दीवारों - दर अपना ।।
चलो अब इजाजत दो ,
सच कहूं तो, बोझ हल्का हो गया ।
ये अधपके सिलसिलों में सिमट कर,
तुम्हारे मर्जी पे गुजरा हर पहर अपना।।
© mukesh_syahi
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