...

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उम्मीद बहक जाने की
ताउम्र संभाल जाने में,
और टूट बिखर जाने में।
आफत में या अंधेरे में,
मिली खाक आखिरी सवेरे में।

वो जिद्द का दामन छोड़ के,
जो जीते हम बस प्यार में,
न याद में, न उम्मीद में,
न मिट जाने की आस में।

तो शायद मिल ही जाती भी,
एक उम्मीद बेहक जाने की।

न आने की, न...