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राम नवमी ✍️✍🏻✍️
सूर्य तिलक रघुबर के माथे दिव्य अलौकिक कैसी छटा है
भारत वर्ष के माथे से ज्यों सदियों का ये कलंक हटा है
योगी ऋषी सब भाग्य प्रबल हैं जो ये अवसर आन पड़ा है
राम के मस्तक पर रवि सोहें कलियुग में त्रेता आन खड़ा है
मुख मंडल की आभा निहारो सूरज चाँद हजारो दिखे हैं
अवधी जन सौभाग्य तुम्हारे राम के पाँव अवध में टिके हैं
जिनके मन बसें राम लला तिन लेत बलैया प्रभु विग्रह की
जिनके अंतर रावण बैठा आवश्यकता नहीं उनसे आग्रह की
प्रभु का मंदिर जबसे बना है ये राक्षस गण सब हैं बौराये
विघ्न जो डालें डाला ना जाये रात में रोयें दिन चिल्लाये
पाँव पड़े ज्योँ मंदिर में तब अंतर मन का मर संशय जाता
सत्य बचा उर अंतर में ज्योँ गीता को सुनके धनञ्जय जाता
लालच झूठ प्रपंच से आगे राम के त्याग को निज मन ढालो
माया मोह को दास बनाकर क्रोध आवेग को मन में पालो
राम सा तारणहार न कोई और पालनहार ना राम के जैसा
जो प्रभु सम्मुख शीश नवावै दुःख विनसे हो वो चाहे जैसा
हो करबद्ध करूँ विनती प्रभु हस्त वरद हम सब पर डारो
जैसी कृपा शबरी पर कीन्हि बस तेहि भाँती हमे भी तारो
© VIKSMARTY _VIKAS✍🏻✍🏻✍🏻