...

29 views

नदी के दो किनारे
नदी के दो किनारे
जैसे मैं और तुम

नदी के दो किनारों सी
ज़िन्दगी है हमारी
तुम उस ओर
और मैं इस ओर

समानांतर चलते-चलते
अक्सर मिल ही जाते हैं
नदी के दो किनारे
कभी ख्वाबों में
कभी ख्यालों में
मैं और तुम!

सदृश होते हुए भी
जिस्मानी दुनिया से दूर
रूहानी जन्नत में
वहां, जहां तुमने और मैंने
अपनी एक अलग दुनिया बसा रखी है।
अक्सर मिल ही जाते हैं
समानांतर चलते-चलते
नदी के दो किनारे
मैं और तुम

कभी तुम्हारे ख्यालों के
हसरत-ए-परवाज़
पर कटे परिंदे सी ज़िन्दगी को
हौंसलों की उड़ान देते हैं
तो कभी शामक बन कर
दर्द-ए-दिल को सुकून देते हैं
समानांतर चलते चलते
अक्सर मिल ही जाते हैं
नदी के दो किनारे
मैं और तुम

कभी ख़्वाबों में गुम
तुम्हारे प्रेम की पराकाष्ठा से
वियोग की परिधि को
लांघता मेरा मन
तुम्हारी असीम मुहब्बत को समर्पित
प्रेम के सागर से
जल-प्लावन होते
अक्सर मिल ही जाते हैं
मैं और तुम
समानांतर चलते-चलते

नदी के दो किनारे
जैसे मैं और तुम
© ShashiN