नदी के दो किनारे
नदी के दो किनारे
जैसे मैं और तुम
नदी के दो किनारों सी
ज़िन्दगी है हमारी
तुम उस ओर
और मैं इस ओर
समानांतर चलते-चलते
अक्सर मिल ही जाते हैं
नदी के दो किनारे
कभी ख्वाबों में
कभी ख्यालों में
मैं और तुम!
सदृश होते हुए भी
जिस्मानी दुनिया से दूर
रूहानी जन्नत में
वहां, जहां तुमने और मैंने
अपनी एक अलग दुनिया बसा रखी है।
अक्सर मिल ही जाते हैं...
जैसे मैं और तुम
नदी के दो किनारों सी
ज़िन्दगी है हमारी
तुम उस ओर
और मैं इस ओर
समानांतर चलते-चलते
अक्सर मिल ही जाते हैं
नदी के दो किनारे
कभी ख्वाबों में
कभी ख्यालों में
मैं और तुम!
सदृश होते हुए भी
जिस्मानी दुनिया से दूर
रूहानी जन्नत में
वहां, जहां तुमने और मैंने
अपनी एक अलग दुनिया बसा रखी है।
अक्सर मिल ही जाते हैं...