...

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शायद इसलिए
आज हर शख्स शायर है,
शायद इसलिए कि अब जमाने का नहीं, अपनों से डर है|
दिनभर कमाने के बाद घर लौटना छोड़ दिया है अब
शुकुन नहीं मिलता है, इसलिए ही तो बाहर है|
क्या सच में घर घर ना रहा या उसकी उम्मीदें बढ़ीं है,
क्योंकि इतना पीकर भी वो होश में है, उसे हर खबर है|
शायद इसलिए भी हर शख्स शायर है|
दर्द हद से बढ़कर घना हो गया हैं, नासूर बन गया,
हाल ए दिल सुना दे किसी को यकीन नहीं,
बेचारा जेहन में ही दर -बदर है|
शायद इसलिए भी हर शख्स शायर है|