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आंखों_की_नमी_आंखों_की_आपबीती_है
आंखों की नमी रातों में ऐसे मचलती है
बहते हुए अश्क़ो के साथ ही सँभलती है
लबों पे गमों का इक ज़लज़ला उठ रहा है
आंखों का पानी आंखों को ही आज़माई है

इन आंखों ने उम्र का तन्हा सफ़र देखा है
मेरे साथ इसकी उसकी बातें भी चलती है
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समेटकर यूं रखा है
अब कहां इन आंखों से नमी निकलती है

तमाम ज़ख़्मों के निशानों को यूं छुपाएं रखें है
आंखों की नमी मेरे लफ़्ज़ों की शुक्र-गुज़ारी है
ख्वाबों ख्वाहिश की कहानी अश्क़ों में समेटे है
यूं ही नहीं लबों की ये ख़ामोशियां मचलती है

ना जाने ये किस फ़िक्र के ज़िक्र में झगड़ती है
आंखों की नमी कोरे पन्नों पे क़िस्सा-कहानी है
गुजरते हुए वक़्त के मिज़ाजों को टटोलें हुए है
हर किसी की आंखों में बस सवाल-ए-इशारी है

खुद से खुद की बेईमानी का ज़रा हिसाब रखें है
अजी यूं ही नहीं ठोकरों से ये ज़िंदगी सँभलती है
उझूल - फिजूल की कश्मकश की तमाम बातें है
आजकल आंखों की नमी आंखों की आप-बीती है

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes
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