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श्री राम मंदिर
रामलला जो अयोध्या विराजे तो,
सब जग, राममय होने लगो है
राम नाम सुमिरन से, मन के,
सब पापन को, धोने लगो है।

क्लेश न कर अब, विद्वेष न कर,
जब कार्य विशेष, ये होने लगो है
जन-जन की तपस्या का, राम की किरपा से
सिद्ध मनोरथ, होने लगो है।

नींव पड़ीं, जो अयोध्या में मंदिर की,
मन ये प्रफुल्लित, होने लगो है
माता-पिता संग, दर्शन को जाऊंगा,
यही स्वप्न यह नित्य, संजोने लगो है।

मंदिर बनो जो अवध सगरा, पुनः
पूर्व सा शोभित, होने लगो है,
सरजू के घाटों पै, प्रज्ज्वलित दीपों तै
हर हिरदय, आलोकित, होने लगो है।

प्राण-प्रतिष्ठा से, प्रभु जी की, प्रत्येक
प्राणी यों पुलकित, होने लगो है,
सदियों से शान्त, शरीर निर्जीव सो
मानौ, पुनर्जीवित, होने लगो है।

इस दैविक, पावन बेला में भी,
इक अश्रु, नयन को भिगोने लगो है
बलिदानी भक्तन को, करने नमन
"भूषण", नत-नस्तक, होने लगो है ।।