...

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सुनो, जवाब दो
सुनो,
क्या आज भी जब तुम फ़ोन की घण्टी सुनते हो,
तो पहला ख़्याल तुम्हें मेरा ही आता है।
क्या आज भी वो तुम्हारा डिब्बे वाला,
मेरे हिस्से का खाना लाता है।।

क्या आज भी सुबह-सुबह जब तुम उठ नहीं पाते,
तो हड़बड़ी में तुम्हें ठीक वैसी ही देर होती है।
क्या आज भी तुम्हारी अंगूठी में वही सफेद,
मेरे हाथों का लगाया मोती है।।

क्या आज भी देर रात तक जागते हुए जब नींद पीछे छूट जाती है,
तो मेरा ख़्याल तुम को जगाता है।
क्या आज भी शाम को,
वही परिंदा आँगन में आता है।।

क्या आज भी जब हाथों से तुम्हारे, सामान गिरता है,
तो तुम मुझे पुकारते हो।
क्या आज भी तुम लूडो में,
हमेशा की तरह हारते हो।।

तो अगर, आज भी मेरी याद तुम्हारे दिल में,
पहले की तरह ताजा है।
तो आ जाओ मेरे पास तुम,
देखो खुला मेरा दरवाज़ा है।
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