...

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आख़री लम्ह़ें
दर्द, भटकन, थकन, डूबती शाम का
राग छेड़ो मुह़ब्बत के अंजाम का

ये कहाँ ले के आई है मजबूरियाँ
पल मयस्सर नहीं कोई आराम का

ऐ सबा उसके कानों में कह आइए
मुंतज़िर है कोई तेरे पैग़ाम का

कैसे मदद-ए-मुक़ाबिल को योद्धा कहूँ
वार ओछा ही होता है इल्ज़ाम का

कल तलक तो यहाँ कोई घर था "ह़यात"
अब निशाँ तक नहीं है दर-ओ-बाम का